।। सच कड़वा होता है ।।
अखिलेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत...!!!कभी तो सही बात को स्वीकार कर लिया करिये समाजवादियों । माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अखिलेश सरकार पर पत्रावलियों पर हस्ताक्षर को लेकर टिप्पणी की है । चूंकि मुख्यमन्त्री को जिस पत्रावली पर हस्ताक्षर करना चाहिए उस पर भी वो हस्ताक्षर नहीं करते । जिस पर करते हैं उस पर सहमत लिख देते हैं ।
समाजवादियों को सहमत और स्वीकृत में अंतर को समझना होगा । सिर्फ आरोप को सिरे से खारिज करना कुंठित मानसिकता का परिचायक है ।अखिलेश सरकार और उसके अंध भक्तों को चिल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए । अपनी नाकामी में भी संघ और मोदी की उन्हें जो वोमटिंग आती है, वो ठीक नहीं । देश की सबसे बड़ी अदालत ने उ प्र की लोकतांत्रिक सरकार पर लोकायुक्त उ प्र की नियुक्ति के प्रकरण में स्पष्ट किया कि अखिलेश सरकार ने अदालत से झूठ बोला और अदालत को गुमराह किया । इससे अधिक शर्म का विषय और क्या हो सकता है...??? 4 साल में अखिलेश सरकार को लोकायुक्त की नियुक्ति के प्रकरण में सबसे अधिक जलील होना पड़ा था ।
लोकायुक्त के प्रकरण में अखिलेश सरकार ने एक जानकारी और उपलब्ध कराई है । इस प्रकरण से ये साबित हो गया कि अखिलेश सरकार माननीय अदालतों में पैरवी के लिए जिन विद्वान अधिवक्ताओं की नियुक्ति की थी, वो काबिल नहीं थे । तभी तो एक प्रकरण में लाखों - करोड़ों रूपये की मोटी रकम प्राइवेट अधिवक्ता को हायर करने में खर्च करने पड़े । अपर महाधिवक्ता श्री गौरव भाटिया और महाधिवक्ता डॉ विजय बहादुर सिंह के अतिरिक्त देश के पूर्व क़ानून मंत्री श्री कपिल सिब्बल को 37 लाख 40 हजार की मोटी रकम अदा की है । बाद में अखिलेश सरकार अपने अपर महाधिवक्ता श्री गौरव भाटिया को उनके पद से हटा दिया । वीरेंद्र भाटिया का उस समय कोई रसूख काम नहीं आया ।
अब तमाम समाजवादियों को इसमें भी संघ की साजिश और मोदी की मिलीभगत दिखेगी । समाजवादियों सच स्वीकारों नहीं तो जनता 2017 में अपने जनादेश में जब आपकी आँखे खोलेगी तो मुंह छिपाने के लिए कहीं जगह भी ढूंढे नहीं मिलेगी । लोकसभा की तरह परिणाम आएगा तो कई को तो दिल का दौरा भी आ सकता है । अभी लोकसभा का परिणाम नेताजी भूले नहीं हैं । नेताजी तो मानते हैं कि मोदी जी की लहर वो कभी भूल ही नहीं सकते । मेरा नेताजी से अनुरोध है कि अपने साथ ही अपने सिपहसलारों को भी कड़वा सच हज़म करने वाली दवा पिलाएं ।
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