संवैधानिक संस्थाओं द्वारा अपनाया जा रहा है दोहरा मापदंड.....!!!
संवैधानिक संस्थाओं द्वारा दोहरा मापदंड अपनाया जाना न्यायिक प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है l वर्ष - 1995 से खाद्य रसद विभाग में परिवहन एवं हैंडलिंग की ठेकेदार रहे प्रतापगढ़ के ट्रांसपोर्टर हरि प्रताप सिंह वर्ष 1995 में पहले नगर पालिका के चेयरमैन निर्वाचित हुए और वर्ष 2002 में प्रतापगढ़ सदर विधान सभा का चुनाव भाजपा के टिकट से लड़कर निर्वाचित हुए और वर्ष 2007 तक का कार्यकाल अपना पूरा किया l परन्तु मजे की बात ये रही कि विधायक की शपथ लेने के बाद भी वो सरकारी ठेकेदारी का कार्य संभागीय खाद्य नियंत्रक, इलाहाबाद सम्भाग के कार्यालय में रजिट्रेशन कराकर करते रहे l
जबकि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में स्पष्ट किया गया है कि कोई विधायक/सांसद सरकारी ठेकेदारी नहीं करेगा l परन्तु सदर विधायक हरि प्रताप सिंह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951से ऊपर होकर खाद्य विभाग में परिवहन एवं हैंडलिंग की ठेकेदारी करते रहे l इसकी शिकायत माननीय लोकायुक्त, उ. प्र. के कार्यालय में परिवाद दाखिल कर किया l परन्तु माननीय लोकायुक्त, उ. प्र. महोदय उक्त प्रकरण को निस्तारित कर दिए l जबकि सेम प्रकरण में माननीय लोकायुक्त, उ. प्र. ने दो वर्तमान विधायकों को उसी सिद्धांत पर अयोग्य घोषित किये जाने की अपनी रिपोर्ट शासन को दी और शासन के साथ - साथ माननीय राज्यपाल महोदय को भी प्रेषित किया l
माननीय राज्यपाल महोदय ने भारत निर्वाचन आयोग से विधिक राय लिया, जहां से इस बात की पुष्टि हो गई कि कोई भी विधायक रहते सरकारी ठेकेदारी का कार्य नहीं कर सकता l लिहाजा बसपा विधायक उमा शंकर सिंह और भाजपा विधायक बजरंग बहादुर सिंह को अयोग्य घोषित कर दिया गया l उन दोनों विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुआ l ऐसे में एक ही तरह के प्रकरण में संवैधानिक संस्थाओं द्वारा दोहरा मापदंड कैसे अपना लिया जाता है, जो चिंता का विषय है l साथ ही संवैधानिक संस्थाओं पर सवालिया निशान भी खड़ा होना स्वाभाविक है.....!!!
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